बंजर जमीन पर फूटे बदलाव के अंकुर, महिला समूह ने बदली गांव की तस्वीर

बंजर जमीन पर फूटे बदलाव के अंकुर, महिला समूह ने बदली गांव की तस्वीर

मनरेगा अंतर्गत बिरसा हरित ग्राम योजना के सहयोग से महिला समूह से जुड़ी महिलाओं ने बदली अपनी जिंदगी

आम बागवानी, शकरकंद, सब्जी, कुरथी की खेती कर आर्थिक रूप से समृद्ध हो रही महिलाएं, कसमार प्रखंड के हीसिम गांव अंतर्गत कटहल टोला के संतोषी महिला मंडल (एसएचजी) का मामला

क्या बंजर जमीन पर हरियाली लहलहा सकती है ? जिले के कसमार प्रखंड के एक सुदूर आदिवासी बहुल गांव हीसिम अंतर्गत कटहल टोला की महिलाओं ने यह असंभव सा सपना सच कर दिखाया है। अपनी मेहनत, हिम्मत, और लगन से उन्होंने न सिर्फ बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी किसानी का नया रास्ता दिखाया। जिससे इलाके की तस्वीर बदल गई है। यह कहानी है नारी शक्ति की, जिसने निराशा को उम्मीद में बदला और आर्थिक समृद्धि के सफर को तय किया।

कसमार प्रखंड के सुदूर आदिवासी बहुल गांव हीसिम के कटहल टोला की महिलाएं आज आम बागवानी के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा चुकी हैं। यह संभव हुआ है सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गरांटी योजना (मनरेगा), झारखंड राज्य आजीविका प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस), प्रदान संस्था एवं सागेन बिरसा हरित ग्राम आम बागवानी लाभुक समिति के सामूहिक प्रयासों के तहत मिली बागवानी सहायता से। इस समिति में कुल 15 महिला किसान दीदियां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हैं, जिन्होंने पांच एकड़ भूमि पर आम का बागवानी किया है।

शुरुआत की चुनौतियां

हिसिम वैसे पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है, जहां पर टांड जमीन (बंजर) क्षेत्र अधिक होने एवं सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण खेती – किसानी लगभग नहीं के बराबर होता है। कटहल टोला की भी भूमि बंजर है, जिससे यहां किसी तरह की फसल उपज नहीं होती थी। इसी क्रम में पंचायत स्तर पर मनरेगा के माध्यम से बिरसा हरित ग्राम योजना के बारे में जानकारी मिली। जिसमें महिलाओं के फसल उत्पादन का सरल तरीके से बाजार तक पहुँच और उचित मूल्य का भरोसा मिला। इससे पूर्व, सही बाजार नहीं मिलने के कारण किसानों को उनके मेहनत का लाभ नहीं मिल पा रहा था।

बदलाव की हुई शुरुआत

इस स्थिति को बदलने – महिलाओं के उम्मीद को पंख लगाने के लिए प्रदान संस्था, जेएसएलपीएस, नाबार्ड एवं संस्थानों द्वारा प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग और बाजार से जोड़ने की पहल की। महिला किसानों द्वारा निर्मित ग्रामीण हरित क्रांति महिला फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड, (नाबार्ड, भारत सरकार के सीएसएस स्कीम 10के एफपीओ के अंतर्गत निर्मित) ने इस दिशा में एक नई राह दिखाई। वर्ष 2025 में, पहली बार इस समिति की महिलाओं ने 15 क्विंटल से अधिक आम को उचित मूल्य पर कंपनी के माध्यम से सीधे बाजार में बेचा। यह उनके लिए सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी एक बड़ी उपलब्धि रही।

बागवानी में महिलाओं ने की मिश्रित खेती

महिलाओं ने आम बागवानी में बड़े क्षेत्रो में सलाना फसल प्लानिंग के अनुसार अच्छे बड़े एवं मिश्रित फसल (शकरकंद, सब्जी,कुरथी) उत्पादन का चुनाव किया। जिससे महिलाओं के जीवन में आर्थिक बदलाव आया है, आज वह अपने घर – गृहस्थी में पुरूषों के साथ कदम ताल कर रही है, परिवार के सभी निर्णयों में अपनी भूमिका अदा कर रही है। नई तकनीक का इस्तेमाल कर संतोषी महिला मंडल से जुड़ी महिलाएं सलाना 45 से 55 हजार रूपये तक कमा रही है।

हमारा आम अब आम नहीं, खास बन गया है

समिति की सदस्य श्रावणी देवी, सुनिया देवी, फूलमणि देवी, सूरजमणि देवी, रजनी देवी, दुखनी देवी, बसंती देवी, पियो देवी एवं अन्य महिलाओं ने कहा कि “पहले हमारे आमों को बाजार में सही दाम नहीं मिलते थे, लेकिन इस बार हमारे अपने ही एफपीसी के माध्यम से जो बिक्री हुई, वह किसी सपने के साकार होने जैसा लगा। हमारा आम अब आम नहीं, खास बन गया है।”

वर्जन

“हमारे गांव की महिलाएं जिस प्रकार आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं, वह अत्यंत प्रेरणा दायक है। यह बदलाव सरकार, निजी संस्थाओं और ग्रामीण हरित क्रांति महिला एफपीसी के सहयोग से ही संभव हो सका है। दूसरी महिला समूह को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।

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